अल्लाह ने शरीअत में इंसानों के लिए आसानी दी है । रोज़ेदार को भी कभी कभी ऐसी मजबूरी पेश आ सकती है जिस से रोज़ा रखना या अगर रोज़ा है तो उसको ज़ारी रखना मुश्किल हो सकता है ।
हम यहाँ पर वो वजहें बता रहे हैं जिनकी वजह से रोज़ा तोड़ देना या रोज़ा न रखना जाएज़ है ।
1. हमल वाली औरत ( Pregnant Woman ) -
अगर हामिला औरत रोज़ा रखने या रोज़े को बाक़ी रखने में अपने बच्चे के लिए नुक़सान समझती हो या अपने लिए मशक्क़त समझती हो तो रोज़ा न रखना या रोज़ा तोड़ना दोनों जाएज़ है बाद में क़ज़ा कर ले ।
2. दूध पिलाने वाली औरत -
अगर बच्चे को दूध पिलाने वाली औरत को रोज़ा रखने या रोजे के दौरान बच्चे के लिए या अपने लिए नुक़सान समझती हो तो रोज़ा न रखना या रोज़ा तोड़ना दोनों जाएज़ है बाद में क़ज़ा कर ले ।
3. मरीज़ -
ऐसा मर्ज़ जिससे बीमारी के बढ़ जाने का अंदेशा हो तो ऐसी बीमारी की वजह से अल्लाह तआला ने रोज़ा तोड़ देने और फिर ठीक हो जाने के बाद उसकी क़ज़ा करने की इजाज़त दी है ,
यानि अगर आप पहले से बीमार हैं इसीलिए रोज़ा नहीं रखा या रोज़ा रखा था लेकिन ज्यादा बीमार हो गए तो रोज़ा तोड दिया तो आप को करना ये है कि जब ठीक हो जाएँ तो उसकी क़ज़ा कर लें यानि जितने रोज़े छूटे हैं उन सब रोज़ों को रमज़ान के बाद रख लें ।
4. मुसाफ़िर -
अगर आपने तक़रीबन 83 किलोमीटर सफ़र का इरादा किया है तो इस्लामी शरीअत की नज़र में आप मुसाफिर माने जाएँगे और सफर में आने वाली परेशानियों के सबब आप रोज़ा छोड़ सकते हैं लेकिन फिर बाद में क़ज़ा कर ज़रूर कर लें ।
5.बहुत ज़्यादा बुढ़ापा -
कोई इतना ज़्यादा बूढा हो गया कि रोज़ा रखने की ताक़त नहीं रखता, तो रोज़ा न रखने की भी इजाज़त है और अगर रख लिया है तो तोड़ने की भी इजाज़त है लेकिन ऐसे शख्स को चाहिए कि रोज़े के बदले फिदया ज़रूर दे ।
6. रोज़े की हालत में सख्त भूख और प्यास होना -
अगर आप को रोज़े की हालत में इतनी ज़्यादा भूख और प्यास लग गयी कि जान निकलने का अंदेशा हो गया तो रोज़ा न रखना या रोज़ा तोड़ना दोनों जाएज़ है बाद में क़ज़ा कर ले । लेकिन अगर जानबूझ कर काम इतना ज्यादा किया कि जान हलाकत की नौबत आ गयी तो ऐसे में रोज़ा तोड़ने पर क़ज़ा के साथ कफ्फारा भी वाजिब है ।
हम यहाँ पर वो वजहें बता रहे हैं जिनकी वजह से रोज़ा तोड़ देना या रोज़ा न रखना जाएज़ है ।
1. हमल वाली औरत ( Pregnant Woman ) -
अगर हामिला औरत रोज़ा रखने या रोज़े को बाक़ी रखने में अपने बच्चे के लिए नुक़सान समझती हो या अपने लिए मशक्क़त समझती हो तो रोज़ा न रखना या रोज़ा तोड़ना दोनों जाएज़ है बाद में क़ज़ा कर ले ।
2. दूध पिलाने वाली औरत -
अगर बच्चे को दूध पिलाने वाली औरत को रोज़ा रखने या रोजे के दौरान बच्चे के लिए या अपने लिए नुक़सान समझती हो तो रोज़ा न रखना या रोज़ा तोड़ना दोनों जाएज़ है बाद में क़ज़ा कर ले ।
3. मरीज़ -
ऐसा मर्ज़ जिससे बीमारी के बढ़ जाने का अंदेशा हो तो ऐसी बीमारी की वजह से अल्लाह तआला ने रोज़ा तोड़ देने और फिर ठीक हो जाने के बाद उसकी क़ज़ा करने की इजाज़त दी है ,
यानि अगर आप पहले से बीमार हैं इसीलिए रोज़ा नहीं रखा या रोज़ा रखा था लेकिन ज्यादा बीमार हो गए तो रोज़ा तोड दिया तो आप को करना ये है कि जब ठीक हो जाएँ तो उसकी क़ज़ा कर लें यानि जितने रोज़े छूटे हैं उन सब रोज़ों को रमज़ान के बाद रख लें ।
4. मुसाफ़िर -
अगर आपने तक़रीबन 83 किलोमीटर सफ़र का इरादा किया है तो इस्लामी शरीअत की नज़र में आप मुसाफिर माने जाएँगे और सफर में आने वाली परेशानियों के सबब आप रोज़ा छोड़ सकते हैं लेकिन फिर बाद में क़ज़ा कर ज़रूर कर लें ।
5.बहुत ज़्यादा बुढ़ापा -
कोई इतना ज़्यादा बूढा हो गया कि रोज़ा रखने की ताक़त नहीं रखता, तो रोज़ा न रखने की भी इजाज़त है और अगर रख लिया है तो तोड़ने की भी इजाज़त है लेकिन ऐसे शख्स को चाहिए कि रोज़े के बदले फिदया ज़रूर दे ।
6. रोज़े की हालत में सख्त भूख और प्यास होना -
अगर आप को रोज़े की हालत में इतनी ज़्यादा भूख और प्यास लग गयी कि जान निकलने का अंदेशा हो गया तो रोज़ा न रखना या रोज़ा तोड़ना दोनों जाएज़ है बाद में क़ज़ा कर ले । लेकिन अगर जानबूझ कर काम इतना ज्यादा किया कि जान हलाकत की नौबत आ गयी तो ऐसे में रोज़ा तोड़ने पर क़ज़ा के साथ कफ्फारा भी वाजिब है ।





उम्दा 🙏🙏🙏
ReplyDeleteMasha Allah bahot hi umda
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