अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में इरशाद फ़रमाता है-
اِنَّاۤ اَنۡزَلْنٰہُ فِیۡ لَیۡلَۃِ الْقَدْرِ﴿۱﴾ۚۖ وَ مَاۤ اَدْرٰىکَ مَا لَیۡلَۃُ الْقَدْرِ ؕ﴿﴾۲
لَیۡلَۃُ الْقَدْرِ۬ۙ خَیۡرٌ مِّنْ اَلْفِ شَہۡرٍ ؕ﴿ؔ﴾۳
تَنَزَّلُ الْمَلٰٓئِکَۃُ وَ الرُّوۡحُ فِیۡہَا بِاِذْنِ رَبِّہِمۡ ۚ مِنۡ کُلِّ اَمْرٍ ۙ﴿ۛ﴾۴
سَلٰمٌ ۟ۛ ہِیَ حَتّٰی مَطْلَعِ الْفَجْرِ ٪﴿﴾۵
तर्जुमाः बेशक हमने इस (क़ुरआन) को शब-ए-क़द्र में उतारा। और आप क्या समझे शब-ए-क़द्र क्या है। शब-ए-क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है। इसमें फ़रिश्ते और जिब्रील अपने परवरदिगार के हुक्म से हर काम के लिये उतरते हैं। वह (रात) सलामती है फ़ज्र तुलू होने तक।
"अम्मा आइशा फरमाती है कि करीम आका सल्लललाहो अलैही वसल्लम ने फरमाया
कि तुम शब ए क़द्र को रमजान के महीने के आखिरी अशरे की ताक रातो ("21,23,25,27,29") मे तलाश करो"
■सही बुखारी:2017■
■सही इब्ने हिब्बान:3673■
■सही मुस्लिम:2763■
■मुसन्नफ अब्दुर रज्ज़ाक:7680
- शब ए क़द्र एक हज़ार महीनों से बेहतर है । [कुरआन]
- तुम शब ए क़द्र को माहे रमज़ान के आख़री अश्रे की ताक़ [21,23,25,27,29] रातों मे तलाश करो । [बुखारी ]
- शब-ए-कद्र मे जो बंदा खड़ा या बैठा यादे ईलाही मे मशगूल रहता है फरिस्ते उसके हक मे दुआ इस्तकफार पढ़ते है।
- जिस ने ईमान और सवाब की नियत से शब ए क़द्र मे क़याम किया [इबादत की] उस के पिछले गुनाह माफ़ कर दिये जाते हैं । [बुखारी]
- इस रात कंकरियों की तादाद से ज़्यादा फ़रिशतें ज़मीन पर होते हैं । [अहमद]
शब-ए-क़द्र मिलने की वजह
इमाम मालिक रदी अल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि जब हुज़ूर ﷺ ने पिछली उम्मतों की उम्रों पर तवज्जह फ़रमाई तो उनके मुक़ाबले में अपनी उम्मत की उम्रें बहुत कम पाईं, आप ﷺ ने ख़्याल फ़रमाया कि जब पहली उम्मतों के मुक़ाबले इनकी उम्रें कम हैं तो नेकियाँ भी कम होगीं इस पर अल्लाह तआला ने आप को शब-ए-क़द्र अता फ़रमाई जो हज़ार महीनों से बेहतर है।
(मूता इमाम मालिक रदी अल्लाहु अ न्हु)
हज़रत मुजाहिद रदी अल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि नबी-ए-करीम मुहम्मद ﷺ ने बनी इसराईल के एक नेक शख़्स का ज़िक्र फ़रमाया जिसने राहे ख़ुदा में जिहाद के लिये हज़ार महीनों तक हथियार उठाये रखे। सिहाबा-ए-किराम को इस पर ताज्जुब हुआ तो अल्लाह तआला ने यह सूरह नाज़िल फ़रमाई और एक रात शब-ए-क़द्र की इबादत को उस मुजाहिद के हज़ार महीनों की इबादत से बेहतर क़रार दिया।
(सुनन अलकुब्रा बैहक़ी, तफ़्सीर इब्ने हरीर)
शबे-कद्र की मख्सूस दुआ
उम्मुल मो'मिनीन आयशा रजि. कहती हैं, मैने कहा: अल्लाह के रसूल! अगर मुझे मालूम हो जाए कि कौन सी रात लैलातुल-कद्र है तो में उसमे क्या पढू? आप ने फ़रमाया: पढ़ो:
उम्मुल मो'मिनीन आयशा रजि. कहती हैं, मैने कहा: अल्लाह के रसूल! अगर मुझे मालूम हो जाए कि कौन सी रात लैलातुल-कद्र है तो में उसमे क्या पढू? आप ने फ़रमाया: पढ़ो:
"اللَّهُمَّ إِنَّكَ عُفُوٌّ كَرِيمٌ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُ عَنِّي"
"अल्लाहुम्मा इन्नका उफ्फुवुन करिमुन तुहिब्बुल अफ़वा फा'फु अन्नी"
ऐ अल्लाह तु माफ़ करने वाला है, माफ़ करने को पसंद फ़रमाता है, तु मुझे माफ़ फ़रमा दे । [तिर्मिजी]
इन सब के साथ-साथ हम और भी दुआ करे और शबे-कद्र में खूब इबादत और क़ुरआन कि तिलावत करे, और साथ में ध्यान रहे, कि खुलूस-ए-निय्यत से सीखा हुआ इल्म-ए-दीन में शुमार होगा।
लैलतुल क़द्र और दो मुसलमानों की आपस की लडा़ई का अंजाम
हदीस है - हज़रत अ़बादह बिन सामित रजि़. अ. अन्हु ने बयान किया कि रसूल अल्लाह स. अ. व. हमें शब ए क़द्र की ख़बर देने के लिये तशरीफ़ ला रहे थे कि दो मुसलमान आपस में झगड़ा करने लगे - इसपर आप स. अ. व. ने फ़रमाया कि मैं आया था कि तुम्हें शब ए क़द्र बताऊँ लेकिन फ़लां फ़लां ने आपस में झगड़ा कर लिया - पस इसका इल्म उठा लिया गया और उम्मीद यही है कि तुम्हारे हक़ में यही बेहतर होगा - अब तुम इसकी तलाश आखि़री अशरे की नौ या सात या पांच की रातों में तलाश करो - सहीह बुखा़री - लैलतुल क़द्र का बयान - हदीस न. 2023
दो मुसलमानों की आपस की लडा़ई का अंजाम यह हुआ कि हम शब ए क़द्र की ठीक मालूमात होने से महरूम हो गए - आज हमें अपना जायजा़ लेने की ज़रुरत है कि हम आपस में लड़कर अपना कितना नुक़सान कर रहे और अल्लाह की कितनी नाराज़गी ले रहे है।
शब ए क़द्र की फ़ज़ीलत
इस सूरह-ए-मुबारक में अल्लाह तआला ने शब-ए-क़द्र की फ़ज़ीलत बयान फ़रमाई है कि यह ऐसी अज़मत और बुज़ुर्गी वाली रात है कि-
- इस रात में क़ुरआन पाक नाज़िल हुआ।
- यह रात हज़ार महीनों से बेहतर है।
- इस रात में जिब्रील अलैहिस्सलाम और फ़रिश्ते ज़मीन पर उतरते हैं।
हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने शब-ए-क़द्र की अहमियत बयान करते हुए फ़रमाया-
माह-ए-रमज़ान में एक रात ऐसी है जो हज़ार महीनों से बेहतर है जो इस रात से महरूम रहा सारी ख़ैर से महरूम रहा।
(सुनन निसाई, मिश्कात)
जब शब-ए-क़द्र आती है तो जिब्रील अलैहिस्सलाम फ़रिश्तों के झुरमुट में ज़मीन पर उतरते हैं और उस शख़्स के लिये दुआ-ए-रहमत करते हैं जो खड़ा या बैठा अल्लाह की इबादत कर रहा हो।
(मिशकात, शैअबुल ईमान लिल बैहक़ी)
हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम और फ़रिश्ते उस शब में इबादत करने वालो से मुसाफ़ा करते हैं और उनकी दुआओं पर आमीन कहते हैं, यहाँ तक कि सुबह हो जाती है। (फ़जाइलुल औक़ात लिल बैहक़ी)
इस रात को लैलतुल क़द्र क्यों कहते हैं ?
इस पाक और बरकत वाली रात को लैलतुल क़द्र कहने की कुछ हिकमते हैं।
- क़द्र का एक मतलब है मर्तबा यानि इस रात की अज़मत, बुज़ुर्गी और आला मर्तबे की वजह से इसका नाम लैलतुल क़द्र पड़ा।
- इस रात में इबादत का मर्तबा बहुत आला है यानि एक रात की इबादत का सवाब हज़ार महीनों की इबादत से बेहतर है।
- इसमें अज़मत और बुलन्द मर्तबे वाली किताब (कुरआन ) नाज़िल हुई।
- इस किताब को लाने वाले जिब्रील भी बुलन्द मर्तबे वाले हैं।
शब-ए-क़द्र के मुताल्लिक आइम्मा-ए-दीन के अलग-अलग क़ौल
इस बारे में आइम्मा-ए-दीन के अलग-अलग क़ौल हैं ।
●इमाम-ए-आज़म अबू हनीफ़ा रदी अल्लाहु अन्हु के एक क़ौल के मुताबिक़ शब-ए-क़द्र पूरे साल में किसी रात को भी हो सकती है। ●सहाबा-ए-किराम में से हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदी अल्लाहु अन्हु का भी यही क़ौल है।
●इमाम-ए-आज़म अबू हनीफ़ा रदी अल्लाहु अन्हु के एक दूसरे क़ौल के मुताबिक़ शब-ए-क़द्र रमज़ान की सत्ताइसवीं (27) शब है।
●इमाम अबू यूसूफ़ रदी अल्लाहु अन्हु और इमाम मुहम्मद रदी अल्लाहु अन्हु के मुताबिक़ शब-ए-क़द्र रमज़ान की किसी भी मुतअय्यन की हुई रात में होती है।
●शाफ़ई उलमा के नज़दीक रमज़ान की इक्कीसवीं (21) शब को होना ज़्यादा मुमकिन है।
●इमाम मालिक रदी अल्लाहु अन्हु और इमाम अहमद बिन हम्बल रदी अल्लाहु अन्हु के मुताबिक़ यह रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ (odd) रातों में होती है। किसी साल किसी रात में और किसी साल किसी दूसरी रात में।
शब-ए-क़द्र रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों मे होने के मुताल्लिक़ अहादीसः-
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि-
शब-ए-क़द्र को रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों में ढूँढो।
(बुख़ारी व मिश्कात में हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाह अन्हा से रिवायत)
शब-ए-क़द्र रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों यानि 21, 23, 25, 27, 29 वीं रात में है जो सवाब की नीयत से इस रात को इबादत करता है अल्लाह तआला उसके पिछले गुनाह माफ़ फ़रमा देता है। इसी रात की निशानियों में से यह है कि यह रात खिली हुई और चमकदार होती है, बिल्कुल साफ़ जैसे नूर की कसरत से चाँद खिला होता है। न ज़्यादा गर्म न ज़्यादा ठंडी बल्कि नरम-गरम। इस रात में आसमान के सितारे शैतानों को नहीं मारे जाते। इसकी निशानियों में से यह भी है कि इस दिन सूरज बग़ैर शुआ के निकलता है, बिल्कुल एकसा टिकिया की तरह जैसा कि चौहदवीं का चाँद, क्योंकि शैतान के लिये रवा नहीं कि वह इस दिन सूरज के साथ निकले।
(मुसनद अहमद, मज्माउज़्ज़वाइद)
इस्लामी भाइयों और बहनों ऊपर बयान किये गये फ़ज़ाइल से यह बात बिल्कुल साफ़ हो गई है कि इस रात बेशुमार बरकतें और रहमतें नाज़िल होती हैं। वैसे तो रमज़ान का पूरा महीना ही रहमतों और बरकतों वाला है और इस महीने में ज़्यादा से इबादत करके अपने रब की रज़ा हासिल करने की कोशिश करनी चाहिये लेकिन इस ख़ास रात को तलाश करने के लिये आख़िरी अशरे की रातों में ख़ूब दिल लगाकर ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करके रज़ा-ए-इलाही हासिल करें।


इस मुक़द्दस रात की तारीफ़ में किसी शायर ने क्या खूब फ़रमाया है
कभी मेराज कभी शब ए बरात तो कभी शब ए कद्र देता है
कितना महेरबान है रब बख्शिश के हज़ारों वसीले देता है
या अल्लाह गलतियों को माफ़ अता फरमा हैं हमारे गुनाहे कबीरा माफ अता फरमा , हमारी दुआएं कबूल अता फरमा , जो जान के या अनजाने में गलती हुई है उसको भी माफ अता फरमा ,जो तुझसे मांगा है जो मांगने से रह गया है वह भी अता फरमा , इस पूरी दुनिया को बलाओ से बीमारी से शिफा अता फरमा , हमें अपने ईमान पर कायम रहने की तौफीक अता फरमा , नमाजो को कायम करने की तौफीक अता फरमा , आमीन सुम्मा आमीन






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