Friday, May 15, 2020

शब ए क़द्र (लैलतुल क़द्र) की फ़ज़ीलत


शब ए क़द्र क्या है और इस मुक़द्दस रात की फ़ज़ीलत  |
                  
अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में इरशाद फ़रमाता है-
اِنَّاۤ اَنۡزَلْنٰہُ فِیۡ لَیۡلَۃِ الْقَدْرِ﴿۱﴾ۚۖ وَ مَاۤ اَدْرٰىکَ مَا لَیۡلَۃُ الْقَدْرِ ؕ﴿﴾۲
لَیۡلَۃُ الْقَدْرِ۬ۙ خَیۡرٌ مِّنْ اَلْفِ شَہۡرٍ ؕ﴿ؔ﴾۳
تَنَزَّلُ الْمَلٰٓئِکَۃُ وَ الرُّوۡحُ فِیۡہَا بِاِذْنِ رَبِّہِمۡ ۚ مِنۡ کُلِّ اَمْرٍ ۙ﴿ۛ﴾۴
سَلٰمٌ ۟ۛ ہِیَ حَتّٰی مَطْلَعِ الْفَجْرِ ٪﴿﴾۵
तर्जुमाः बेशक हमने इस (क़ुरआन) को शब-ए-क़द्र में उतारा। और आप क्या समझे शब-ए-क़द्र क्या है। शब-ए-क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है। इसमें फ़रिश्ते और जिब्रील अपने परवरदिगार के हुक्म से हर काम के लिये उतरते हैं। वह (रात) सलामती है फ़ज्र तुलू होने तक।
"अम्मा आइशा फरमाती है कि करीम आका सल्लललाहो अलैही वसल्लम ने फरमाया
कि तुम शब ए क़द्र को रमजान के महीने के आखिरी अशरे की ताक रातो ("21,23,25,27,29") मे तलाश करो"
■सही बुखारी:2017■
■सही इब्ने हिब्बान:3673■
■सही मुस्लिम:2763■
■मुसन्नफ अब्दुर रज्ज़ाक:7680
  • शब ए क़द्र एक हज़ार महीनों से बेहतर है । [कुरआन]
  • तुम शब ए क़द्र को माहे रमज़ान के आख़री अश्रे की ताक़ [21,23,25,27,29] रातों मे तलाश करो । [बुखारी ]
  • शब-ए-कद्र मे जो बंदा खड़ा या बैठा यादे ईलाही मे मशगूल रहता है फरिस्ते उसके हक मे दुआ इस्तकफार पढ़ते है।
  • जिस ने ईमान और सवाब की नियत से शब ए क़द्र मे क़याम किया [इबादत की] उस के पिछले गुनाह माफ़ कर दिये जाते हैं । [बुखारी]
  • इस रात कंकरियों  की तादाद से ज़्यादा फ़रिशतें ज़मीन पर होते हैं । [अहमद]
शब-ए-क़द्र मिलने की वजह
इमाम मालिक रदी अल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि जब हुज़ूर ﷺ ने पिछली उम्मतों की उम्रों पर तवज्जह फ़रमाई तो उनके मुक़ाबले में अपनी उम्मत की उम्रें बहुत कम पाईं, आप ﷺ ने ख़्याल फ़रमाया कि जब पहली उम्मतों के मुक़ाबले इनकी उम्रें कम हैं तो नेकियाँ भी कम होगीं इस पर अल्लाह तआला ने आप को शब-ए-क़द्र अता फ़रमाई जो हज़ार महीनों से बेहतर है।
(मूता इमाम मालिक रदी अल्लाहु अ न्हु)
हज़रत मुजाहिद रदी अल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि नबी-ए-करीम मुहम्मद ﷺ ने बनी इसराईल के एक नेक शख़्स का ज़िक्र फ़रमाया जिसने राहे ख़ुदा में जिहाद के लिये हज़ार महीनों तक हथियार उठाये रखे। सिहाबा-ए-किराम को इस पर ताज्जुब हुआ तो अल्लाह तआला ने यह सूरह नाज़िल फ़रमाई और एक रात शब-ए-क़द्र की इबादत को उस मुजाहिद के हज़ार महीनों की इबादत से बेहतर क़रार दिया।
(सुनन अलकुब्रा बैहक़ी, तफ़्सीर इब्ने हरीर)
शबे-कद्र की मख्सूस दुआ
उम्मुल मो'मिनीन आयशा रजि. कहती हैं, मैने कहा: अल्लाह के रसूल! अगर मुझे मालूम हो जाए कि कौन सी रात लैलातुल-कद्र है तो में उसमे क्या पढू? आप ने फ़रमाया: पढ़ो:
"اللَّهُمَّ إِنَّكَ عُفُوٌّ كَرِيمٌ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُ عَنِّي"
"अल्लाहुम्मा इन्नका उफ्फुवुन करिमुन तुहिब्बुल अफ़वा फा'फु अन्नी"
ऐ अल्लाह तु माफ़ करने वाला है, माफ़ करने को पसंद फ़रमाता है, तु मुझे माफ़ फ़रमा दे । [तिर्मिजी]
[इमाम तिरमिज़ी और शैख अल्बानी ने इस हदीस को सहीह कहा है।]
इन सब के साथ-साथ हम और भी दुआ करे और शबे-कद्र में खूब इबादत और क़ुरआन कि तिलावत करे, और साथ में ध्यान रहे, कि खुलूस-ए-निय्यत से सीखा हुआ इल्म-ए-दीन में शुमार होगा।

लैलतुल क़द्र और दो मुसलमानों की आपस की लडा़ई का अंजाम
हदीस है - हज़रत अ़बादह बिन सामित रजि़. अ. अन्हु ने बयान किया कि रसूल अल्लाह स. अ. व. हमें शब ए क़द्र की ख़बर देने के लिये तशरीफ़ ला रहे थे कि दो मुसलमान आपस में झगड़ा करने लगे - इसपर आप स. अ. व. ने फ़रमाया कि मैं आया था कि तुम्हें शब ए क़द्र बताऊँ लेकिन फ़लां फ़लां ने आपस में झगड़ा कर लिया - पस इसका इल्म उठा लिया गया और उम्मीद यही है कि तुम्हारे हक़ में यही बेहतर होगा - अब तुम इसकी तलाश आखि़री अशरे की नौ या सात या पांच की रातों में तलाश करो - सहीह बुखा़री - लैलतुल क़द्र का बयान - हदीस न. 2023
दो मुसलमानों की आपस की लडा़ई का अंजाम यह हुआ कि हम शब ए क़द्र की ठीक मालूमात होने से महरूम हो गए - आज हमें अपना जायजा़ लेने की ज़रुरत है कि हम आपस में लड़कर अपना कितना नुक़सान कर रहे और अल्लाह की कितनी नाराज़गी ले रहे है।

शब ए क़द्र की फ़ज़ीलत
इस सूरह-ए-मुबारक में अल्लाह तआला ने शब-ए-क़द्र की फ़ज़ीलत बयान फ़रमाई है कि यह ऐसी अज़मत और बुज़ुर्गी वाली रात है कि-
  • इस रात में क़ुरआन पाक नाज़िल हुआ।
  • यह रात हज़ार महीनों से बेहतर है।
  • इस रात में जिब्रील अलैहिस्सलाम और फ़रिश्ते ज़मीन पर उतरते हैं।
  • इस रात में सुबह होने तक बरकतें नाज़िल होती है और इसमें सलामती ही सलामती है।
हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने शब-ए-क़द्र की अहमियत बयान करते हुए फ़रमाया-
माह-ए-रमज़ान में एक रात ऐसी है जो हज़ार महीनों से बेहतर है जो इस रात से महरूम रहा सारी ख़ैर से महरूम रहा।
(सुनन निसाई, मिश्कात)
जब शब-ए-क़द्र आती है तो जिब्रील अलैहिस्सलाम फ़रिश्तों के झुरमुट में ज़मीन पर उतरते हैं और उस शख़्स के लिये दुआ-ए-रहमत करते हैं जो खड़ा या बैठा अल्लाह की इबादत कर रहा हो।
(मिशकात, शैअबुल ईमान लिल बैहक़ी)
हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम और फ़रिश्ते उस शब में इबादत करने वालो से मुसाफ़ा करते हैं और उनकी दुआओं पर आमीन कहते हैं, यहाँ तक कि सुबह हो जाती है। (फ़जाइलुल औक़ात लिल बैहक़ी)
इस रात को लैलतुल क़द्र क्यों कहते हैं ?
इस पाक और बरकत वाली रात को लैलतुल क़द्र कहने की कुछ हिकमते हैं।
  • क़द्र का एक मतलब है मर्तबा यानि इस रात की अज़मत, बुज़ुर्गी और आला मर्तबे की वजह से इसका नाम लैलतुल क़द्र पड़ा।
  • इस रात में इबादत का मर्तबा बहुत आला है यानि एक रात की इबादत का सवाब हज़ार महीनों की इबादत से बेहतर है।
  • इसमें अज़मत और बुलन्द मर्तबे वाली किताब (कुरआन ) नाज़िल हुई।
  • इस किताब को लाने वाले जिब्रील भी बुलन्द मर्तबे वाले हैं।
  • यह बड़ी शान वाली किताब अल्लाह के महबूब और बहुत ही अज़मत और बुलन्द मर्तबे वाले अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद ﷺ पर नाज़िल हुई।
शब-ए-क़द्र के मुताल्लिक आइम्मा-ए-दीन के अलग-अलग क़ौल
इस बारे में आइम्मा-ए-दीन के अलग-अलग क़ौल हैं ।
●इमाम-ए-आज़म अबू हनीफ़ा रदी अल्लाहु अन्हु के एक क़ौल के मुताबिक़ शब-ए-क़द्र पूरे साल में किसी रात को भी हो सकती है। ●सहाबा-ए-किराम में से हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदी अल्लाहु अन्हु का भी यही क़ौल है।
●इमाम-ए-आज़म अबू हनीफ़ा रदी अल्लाहु अन्हु के एक दूसरे क़ौल के मुताबिक़ शब-ए-क़द्र रमज़ान की सत्ताइसवीं (27) शब है।
●इमाम अबू यूसूफ़ रदी अल्लाहु अन्हु और इमाम मुहम्मद रदी अल्लाहु अन्हु के मुताबिक़ शब-ए-क़द्र रमज़ान की किसी भी मुतअय्यन की हुई रात में होती है।
●शाफ़ई उलमा के नज़दीक रमज़ान की इक्कीसवीं (21) शब को होना ज़्यादा मुमकिन है।
●इमाम मालिक रदी अल्लाहु अन्हु और इमाम अहमद बिन हम्बल रदी अल्लाहु अन्हु के मुताबिक़ यह रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ (odd) रातों में होती है। किसी साल किसी रात में और किसी साल किसी दूसरी रात में।

शब-ए-क़द्र रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों मे होने के मुताल्लिक़ अहादीसः-
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि-
शब-ए-क़द्र को रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों में ढूँढो।
(बुख़ारी व मिश्कात में हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाह अन्हा से रिवायत)
शब-ए-क़द्र रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों यानि 21, 23, 25, 27, 29 वीं रात में है जो सवाब की नीयत से इस रात को इबादत करता है अल्लाह तआला उसके पिछले गुनाह माफ़ फ़रमा देता है। इसी रात की निशानियों में से यह है कि यह रात खिली हुई और चमकदार होती है, बिल्कुल साफ़ जैसे नूर की कसरत से चाँद खिला होता है। न ज़्यादा गर्म न ज़्यादा ठंडी बल्कि नरम-गरम। इस रात में आसमान के सितारे शैतानों को नहीं मारे जाते। इसकी निशानियों में से यह भी है कि इस दिन सूरज बग़ैर शुआ के निकलता है, बिल्कुल एकसा टिकिया की तरह जैसा कि चौहदवीं का चाँद, क्योंकि शैतान के लिये रवा नहीं कि वह इस दिन सूरज के साथ निकले।
(मुसनद अहमद, मज्माउज़्ज़वाइद)
इस्लामी भाइयों और बहनों ऊपर बयान किये गये फ़ज़ाइल से यह बात बिल्कुल साफ़ हो गई है कि इस रात बेशुमार बरकतें और रहमतें नाज़िल होती हैं। वैसे तो रमज़ान का पूरा महीना ही रहमतों और बरकतों वाला है और इस महीने में ज़्यादा से इबादत करके अपने रब की रज़ा हासिल करने की कोशिश करनी चाहिये लेकिन इस ख़ास रात को तलाश करने के लिये आख़िरी अशरे की रातों में ख़ूब दिल लगाकर ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करके रज़ा-ए-इलाही हासिल करें।
इस मुक़द्दस रात की तारीफ़ में किसी शायर ने क्या खूब फ़रमाया है
कभी मेराज कभी शब ए बरात तो कभी शब ए कद्र देता है
कितना महेरबान है रब बख्शिश के हज़ारों वसीले देता है
या अल्लाह गलतियों को माफ़ अता फरमा हैं हमारे गुनाहे कबीरा माफ अता फरमा , हमारी दुआएं कबूल अता फरमा , जो जान के या अनजाने में गलती हुई है उसको भी माफ अता फरमा ,जो तुझसे मांगा है जो मांगने से रह गया है वह भी अता फरमा , इस पूरी दुनिया को बलाओ से बीमारी से शिफा अता फरमा , हमें अपने ईमान पर कायम रहने की तौफीक अता फरमा , नमाजो को कायम करने की तौफीक अता फरमा , आमीन सुम्मा आमीन

Friday, May 8, 2020

कुरान शरीफ की सूरतों का नाम और उनका मतलब



हमलोग  अक्सर कुरआन शरीफ की सूरतें पढ़ते है लेकिन क्या आपको इन सूरतों के मतलब भी मालूम है? तो आइये आपको इन सूरतों के हिंदी मायनों से रूबरू करवाते हैं   --- 

1- सूरह फातेहा = शुरू करना

2- सूरह बकराह = गाय 

3 - सूरह आले इमरान = हजरत इमरान अलेहिस्सलाम की औलाद 

4- सूरह निसा = औरतें 

5- सूरह मायदा = दस्तरख्वान

6- सूरह अन्आम = जानवर , मवेशी 

7- सूरह आराफ = बुलंदिया 

8- सूरह अनफाल = माले गनीमत 

9- सूरह तौबा = माफी

10- सूरह युनुस = एक नबी का नाम

11- सूरह हुद = एक नबी का नाम

12- सूरह यूसुफ = एक नबी का नाम 

13- सूरह राअद = बादल की गरज

14- सूरह इब्राहीम = एक नबी का नाम

15- सूरह हिज्र = एक जगह का नाम

16- सूरह नहल = मधुमक्खी 

17- सूरह इस्राईल =
हज़रत याक़ूब अलेहिस्सालाम की औलाद 

18- सूरह कहफ = गार,गुफा

19- सूरह मरयम = हजरत ईसा अलैहिस्सलाम की वालिदा मोहतरमा का नाम 

20- सूरह ताहा = हुरूफे मुकत्तआत के दो हुरूफ

21- सूरह अंबिया = अल्लाह के तमाम पैगंबर,नबी की जमा (बहुवचन)

22- सूरह हज = जियारत

23- सूरह मुअमीनून = ईमान वाले लोग

24- सूरह नूर = रौशनी

25-सुरह फुरकान = सही और गलत में फर्क करने वाली चीज 


26-सूरह शुअरा = शायर
 लोग,शायर की जमा(बहुवचन)

27- सूरह नम्ल = चींटी 

२- सूरह क़सस = किस्से, सच्चे वाकिआत 

29- सूरह अन्कबूत = मकड़ी 

30- सूरह रोम = रोम,एक देश का नाम

31- सूरह लुकमान =अल्लाह के एक नेक बुजुर्ग बंदे का नाम

32- सूरह सज्दा = झुकना,सज्दा करना 

33- सूरह अहज़ाब = लश्कर,जमा,गिरोह 

34- सूरह सबा =एक कौम 

35- सूरह फ़ातिर = पैदा करने वाला

36- सूरह या सीन =हुरूफे
 मुकत्तआत के दो हुरूफ

37- सूरत साफ्फात =सफ बंदी करने वाले,लाइन से खड़े होने वाले

38- सूरह स्वाद(ص) = हुरूफे मुकत्तआत के एक हुरूफ

39- सूरह जुमर = गिरोह दर गिरोह 

40- सूरह मोमीन = ईमान वाला 

41- सूरह हा मीम = हुरूफे मुकत्ताआत के दो हुरूफ

42- सूरह शूरा = सलाह मशविरा 

43- सूरह जुखरूफ = सोना (gold)

44- सूरह दुखान = धुआँ

45- सूरह जासिया = घुटनों के बल गिरे हुए

46- सूरह अहकाफ =
एक जगह का नाम 

47- सूरह मुहम्मद(ﷺ) =हमारे प्यारे नबी का मुबारक नाम 

48- सूरह फतह = जीत , कामयाबी 

49- सूरह हुजरात = हुजरे /  कमरे

50-सूरह काफ़(ق)= हुरूफे मुकत्तआत का एक हुरूफ


51- सूरह जारियात = धूल उड़ाने वाली हवा

52- सूरह तूर = एक पहाड़ का नाम

53- सूरह नज्म = सितारे

54- सूरह क़मर = चाँद

55- सूरह रहमान = (बहुत ज्यादा रहम फरमाने वाला, अल्लाह तआला का एक सिफाती नाम

56- सूरह वाकिया = वाके होने वाली,कयामत 

57- सूरह हदीद = लोहा

 58- सूरह मुजादला = बहस , इख्तेलाफ , झगड़ा

59- सूरह हश्र = जमा होना,कयामत के दिन दुबारा जिंदा होकर जमा होना 

60- सूरह मुमताहिना = इम्तेहान लेने वाली 

61- सूरह सफ = लाइन से खड़े होना,सफ बंदी 

62- सूरह जुम्आ = हफ्ते के दिनों में से एक मुबारक दिन 

63- सूरह मुनाफिकून = मुनाफिक लोग

64- सूरह तगाबून = हार-जीत, नुकसान से गुजरना 

65- सूरह तलाक = आजाद करना, तलाक देना 

66- सूरह तहरीम = हराम कर देना 

67- सूरह मुल्क = बादशाही 

68- सूरह कलम = पेन,कलम

69- सूरह हाक्का = हकीकत, कयामत 

70- सूरह मआरिज = बुलंदिया

71- सूरह नूह = एक नबी का नाम

72- सूरह जिन्न = जिन्नात,आग से पैदा की हुई अल्लाह की एक मख्लूक

73- सूरह मुजम्मिल = चादर लपेटने वाला 

74- सूरह मुदस्सिर = चादर ओढने वाला

75- सूरह कियामाह = कियामत,यकीनन कायम होने वाली 


76- सूरह दहर = जमाना,अरसा,वक्त

77- सूरह मुरसलात = हवाएँ  

78- सूरः नबा = अहम खबर 

79- सूरह नाज़िआत = सख्ती से खिंचने वाले 

80- सूरह अबासा = त्यौरी चढ़ाना

81- सूरह तकवीर = लपेटना

82- सूरह इंफितार = फटना

83- सूरह मुतफ्फिफीन = नाप तौल में कमी करने वाले


84-सूरह इंशिकाक = फट जाना 

85- सूरह बुरूज = सितारों वाला आसमान 

86- सूरह तारिक = चमकता तारा

87-सूरह आला = सबसे ऊँचा 

88- सूरह गाशिया = छा जाने वाली मुसीबत(कयामत)

89- सूरह फज्र = फज्र,सुबह सादिक

90-सूरह बलद = शहर

91-सूरह शम्स = सूरज

92-सूरह लैल = रात

93- सुरह धुहा = दिन की रौशनी,चाश्त का वक्त 

94-सूरह शरह = खोल देना

95- सूरह तीन = अंजीर

96-सूरह अलक = जमा हुआ खून

97-सूरह कद्र = कदर,इज्जत

98-सूरह बय्यनाह = वाजेह दलील

99-सूरह जिल्जाल = जलजला, भूकंप

100-सूरह अदियात = घुड़दौड़ का घोड़ा


101-सूरह कारिया = खड़खड़ा देने वाली(कयामत)

102-सूरह तकासूर = ज्यादती की ख्वाहिश 

103-सूरह अस्र =जमाना

104-सूरह हुमाजा =ऐब निकालना

105-सूरह फील = हाथी

106- सूरह कुरैश  = कुरैशी,अरब के एक कबीले का नाम

107-सूरह माऊन =आम इस्तेमाल की चीजें 

108-सूरह कौसर = होजे कौसर 

109-सूरह काफिरून = काफिर लोग 

110-सूरह नस्र = मदद

111- सूरह तब्बत = आग के शोले 

112-सूरह इख्लास = खालिस, वहदानियत

113- सूरह फलक = सुबह

114-सूरह नास = इंसान,आदमी,लोग


Dua of Ramazan's first, second and third Ashra


As Ramadan is a month of mercy and magafirat  and in this there are some prayers which will  Beneficial for everyone . 


What are the three Ashars of Ramadan and which ones?

1. The first Ashra (first 10 days of Ramadan i.e. 1 to 10 Ramadan) This Ashra is of Rahmat.

2. The second Ashra ( the second 10 days of Ramadan i.e. 10 to 20 Ramadan) This ashra is of Magafirat.

3. The third Ashra (ie Ramazan is the third 10 days i.e. 20 to 30 Ramazan) This ashra is derived (release) from Jahnam (hell) .

Now you have known about the three ashra then now also know which are the prayers offered in it. Those prayers are recited in different ashrams of Ramadan, i.e. the first ten days of Ramadan read one dua, the second ten days the second dua, the third ten days the third dua.



  • Prayer for first Ashra of Ramadan





Dua : Rabbig Phir Varaham va Anta Khairur Rahimin.



Translation: O God bless me, bless me, you are better than all.



The first ten days of Ramadan are the best to seek mercy from Allah, as there is no limit to his mercy. He will give you more than you expect.



  • Dua of the second Ashra of Ramadan




  
Dua : Astag Firul Laha Rabbi Min Kulli Zambiv va Atubu Ilaih.



Translation: I ask Allah for all sins, which is my God and I turn to him.



This ashra of Ramadan lasts from the 11th to the 20th. All of us should apologize for the sins and promise ourselves that you will not commit the same sin again.



  • Dua of Ramazan's third Ashara




 Dua : Allahumma Ajirna Minan Nar.



Translation: O Allah! Give us shelter with fire.



There is also a Shabe Kadra (Lailatul Qadr) in this last ashra of Ramadan. In this, the prayer of Khalasi (release) and redemption from Jahannam should be sought and in the above prayer, shelter has been sought from the fire itself.

रमज़ान के पहले , दूसरे और तीसरे अशरे की दुआ


जैसा कि रमज़ान रहमतों और मगफिरत का महीना है और इस में की गयी इबादत और नेकियों का सवाब कई गुना बढ़ कर मिलता है । इस में कुरान की तिलावत की बड़ी फ़ज़ीलत है, और इस में कुछ दुआएं ऐसी है
जिनका पढना एक बहुत बड़ा सवाब है , जिनसे अल्लाह की रहमत हम पर छा जाती है ।उसकी मगफिरत हम को अपने दामन में समेट लेती है और चूकि रमज़ान में ये दुआयें पढ़ रहे है तो इसके सवाब का आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते, इसलिए इन तीनों अशरों यानि तीसों दिन में आपकी ज़ुबान पर ज्यादा से ज्यादा ये दुआए जारी रहनी चाहिए।



रमज़ान के तीन अशरे क्या और कौन कौन से हैं ?
1. पहला अशरा (रमज़ान के पहले 10 दिन यानी 1 से लेकर 10  रमज़ान  ) ये अशरा रहमत का है ।

2. दूसरा अशरा (यानि रमज़ान के दुसरे 10 दिन यानी 10 से लेकर 20  रमज़ान) ये अशरा मगफिरत का है ।

3. तीसरा अशरा (यानि रमज़ान तीसरे 10 दिन  यानी 20 से लेकर 30  रमज़ान) ये अशरा जहन्नम से नजात और खलासी का है ।

आप ने तीनों अशरों के बारे में जान लिया तो अब ये भी जान लीजिये कि इस में पढ़ी जाने वाली दुआए कौन सी हैं । वो दुआएं रमज़ान के अलग अलग अशरे में पढ़ी जाती हैं यानि रमज़ान के पहले दस दिन एक दुआ , दुसरे दस दिन दूसरी दुआ  , तीसरे दस दिन तीसरी दुआ पढ़ी जाती है ।

  • रमज़ान के पहले अशरे की दुआ



Dua In Hindi :  रब्बिग फ़िर वरहम व अंता खैरुर राहिमीन ।

Translation : ए मेरे रब मुझे बख्श दे, मुझ पर रहम फरमा, तू सब से बेहतर रहम फरमाने वाला है ।

रमज़ान के पहले दस दिन अल्लाह से रहम की तलाश करने के लिए सबसे अच्छे है, क्योंकि इसमें उसके रहम की कोई सीमा नहीं होती है । वह आपको आपकी उम्मीद से कहीं ज्यादा देगा ।


  • रमज़ान के दुसरे अशरे की दुआ 





Dua In Hindi : अस्तग फ़िरुल लाहा रब्बी मिन कुल्लि ज़म्बिव व अतूबु इलैह ।

Translation : मैं अल्लाह से तमाम गुनाहों की बखशिश मांगता हूँ जो मेरा रब है और उसी की तरफ रुजू करता हूँ ।

रमजान का ये अशरा 11 वें रोज़े से लेकर 20 वें तक रहता है । हम सभी को इसमें अपने किए हुए गुनाहों से अस्तग्फार और गुनाहों की माफ़ी मांगनी चाहिए और खुद से वादा करना चाहिए कि आप फिर से वही गुनाह नहीं करेंगे ।


  • रमज़ान के तीसरे अशरे की दुआ




Dua In Hindi : अल्लाहुम्मा अजिरना मिनन नार ।

Translation : ए अल्लाह ! हमको आग से पनाह दे दीजिये ।

रमजान के इस आखिरी अशरे में  शबे कद्र (लैलतुल क़द्र)  भी होती  हैं । इसमें जहन्नम से खलासी (रिहाई )और छुटकारे की दुआ मांगनी चाहिए और ऊपर दी गयी दुआ में आग से ही पनाह मांगी गयी है ।

Tuesday, May 5, 2020

14 things which break the fast (Roza) [English]


 1. Water to go in throat while doing gusl or wuju -   While doing gusl or wuzu, anyone doing a kulli that if the water came down from the throat , then the fast would break.

 2. Intentionally  vomiting- If you have vomited yourself, then fast (Roza) will not break, but if you put a finger in your mouth, the fast will break.

 3.Have sex  -
 While fast , it will break if you have sex with your wife.

 4. Ejaculation when lying down with your wife -
 There was Intimate  with his wife,  fast will not break if he did not have sex , but if Semen comes out, then the fast will break.

 5. If the woman has hay ( Menstruation) or nifas - If the woman comes to menstruation period or if the blood of nifas comes after birth of child, then fast will break

 6. Steaming of a medicine - If there is a cold, if someone takes the medicines with steam, the fast (Roza) will break.


 7. Smoking Beedi, cigarette, and hookah -
  If there is something that fumes, then intentionally taking the smoke inside the smoke breaks the fast.

 8. Intentionally taking  food / meal - if any body has taken food/meal by mistake it is not suppose to break Roza but stop when remember .
  


 9. Taking food after the time of Sahari ends - While taking  Sahari b it was found out that the time of Sahari was over, the fast would break.

 10. Iftar before the time of iftar -
 It is presumed that if there is a lack of time, then I have opened the fast, but later it was found that if there was no time, the fast would break.

 11. Masturbation in the condition of fasting -
 This practice is the same in Islam, but if done in the condition of fasting, then fasting will break.

 12. Using an Inhaler -
 Patients with diseases like asthma usually use an inhaler, then the use of it will break the fast.

 13. Swallowing something stuck in the  mouth -
 After Sahari, something was stuck in the mouth, if it was swallowed later, if it was equal to a gram = चना  (Grain)then it would break, but it was not equal to gram but it was smaller than gram, then it will not break.  But if the trapped thing is taken out of the mouth and then swallowed, then it will break if it is equal to gram or not.



 14. Medication in nose -
 Because by putting the medicine in the nose, that medicine goes directly to the internal stomach , so the fast breaks.

14 काम जिन के करने से रोज़ा टूट जाता है



1.गुस्ल या वुज़ू करते वक़्त पानी हलक में चला जाना - ग़ुस्ल या वुजू करते वक़्त कुल्ली  कर रहे थे कि पानी हलक से नीचे उतर गया तो रोज़ा टूट जायेगा |

2. जान बूझ कर कै (vomiting) करना - आपको अगर खुद उल्टी (vomiting) हो गयी तो रोज़ा नही टूटेगा , लेकिन अगर खुद मुंह मे उंगली डाल के उल्टी की तो रोज़ा टूट जाएगा ।।

3. हमबिस्तरी (sex) करना -
रोज़े की हालत में बीवी के साथ हमबिस्तरी करने पर रोज़ा टूट जायेगा ।

4. बीवी के साथ लेटने पर इन्जाल हो जाये -
बीवी के साथ दिल्लगी हो रही थी ,  हमबिस्तरी नहीं की लेकिन मनी निकल आई तो ऐसे में रोज़ा टूट जायेगा ।

5. औरत को हैज़ या निफास आना - औरत को माहवारी (periods) आ जाये या पैदाइश के बाद जो निफास का खून आता है वो आ जाये तो रोज़ा टूट जायेगा

6. किसी दवा का भाप लेना -
 अगर ज़ुकाम है तो दवा का भाप  लेने पर रोज़ा टूट जायेगा ।

7. बीड़ी, सिग्रेट, हुक्का पीना -
 कोई ऐसी चीज़ जो धुवां करती हो तो जान बूझ कर धुवां अन्दर हलक के उतार लेने से रोज़ा टूट जाता है ।


8. जान बूझ कर खाना पीना -
भूल कर खाने पीने से रोज़ा नहीं टूटता लेकिन जैसे ही याद आ जाये फ़ौरन रुक जाये । अगर याद आने पर भी खाने - पीने से न रुका तो रोज़ा टूट जायेगा ।

9. सहरी का वक़्त ख़त्म होने के बाद भी खाना पीना -
सहरी खायी लेकिन बाद में पता चला कि सहरी का वक़्त ख़त्म हो चूका था रोज़ा टूट जायेगा ।

10. इफ़्तार के वक़्त से पहले इफ़्तार करना -
गुमान हुआ कि कहीं अज़ान हो रही है तो रोज़ा खोल लिया लेकिन बाद में पता चला कि अभी वक़्त नहीं हुआ था तो रोज़ा टूट जायेगा

11. मुश्तजनी  ( Masturbation )करना - 
ये अमल तो इस्लाम में वैसे ही हराम है लेकिन अगर रोज़े की हालत में किया तो रोज़ा टूट जायेगा ।

12. इन्हेलर इस्तेमाल करना -
दमा जैसी बीमारियों के मरीज़ आम तौर से इन्हेलर इस्तेमाल करते हैं तो इसके इस्तेमाल से रोज़ा टूट जायेगा ।

13. मुंह में फंसी हुई चीज़ को निगलना -
सहरी के बाद मुंह में कोई चीज़ फंसी रह गयी थी, बाद में अगर उसको निगल लिया तो अगर वो चने के बराबर था तो रोज़ा टूट जायेगा लेकिन चने के बराबर नहीं था  बल्कि चने से छोटा था तो रोज़ा नहीं टूटेगा । लेकिन अगर फंसी हुई चीज़ मुंह से निकाली और फिर निगल ली तो चाहे वो चने के बराबर हो या न हो रोज़ा टूट जायेगा ।

14. नाक में दवा डालना - 
क्यूंकि नाक में दवा डालने से वो दवा सीधे मेदे में जाती है इसलिए रोज़ा टूट जाता है ।

It is not permissible to break or not keep Roza (fast) due to these reasons .[English]

Allah has given ease for humans in Sharia.  Sometimes a person may also feel compulsion which can make it difficult to keep fast or if it is fasting.
Here we are giving reasons why it is not permissible to break the fast or to keep fasting.

 1. Pregnant Woman
 If a Hamila (pregnant) woman considers a loss for her child in keeping the fast or fasting, or considers it difficult for herself, then it is not permissible to keep fast or break the fast.



 2. Feeding women -
 If a woman who is feeding a child considers it to be a loss for the child or during the fast or for the child, then it is not permissible to keep the fast or break the fast. 



 3.  Patients - A disease that is expected to aggravate the disease, because of such a disease, Allah has allowed to break the fast and get it cured once he is cured,
 That is, if you are already ill that is why you did not keep fast or kept fast, but if you become more ill, then broke the fast, but you have to do it when you are cured, that is to fast it, that is, all the days that are left, Ramadan  Keep it after.



 4.Traveler - If you have intended to travel about 83 kilometers, then in the law of Islamic Shariat, you will be considered a traveler and you can leave fast because of the troubles coming in the journey, but then do it later.



5. Extreme old age -
 Someone is so much old by age that if he does not have the strength to keep the fast, then he is also not allowed to keep the fast and if he has kept it, he is also allowed to break, but such a person must give money in return for fasting. 



 6.Hunger and thirst in the condition of fasting -
 If you feel so hungry and thirsty in the condition of fasting that you are afraid to die, then it is not permissible to keep fast or break the fast.  But if you have done so much work deliberately that there is a problem on life, then in such a situation, Kaffara is also justified with breaking the fast.